कैप्सूल योग रखे निरोग

कैप्सूल योग रखे निरोग

किशोर कुमार

यह विज्ञान सम्मत है कि योग करके न केवल निरोग रहा जा सकता है, बल्कि यह हमारे व्यक्तित्व के सभी आयामों के लिए लाभदायक है। पर आज की भाग-दौड़ की जिंदगी में इसके लिए आमतौर पर समय निकालना कठिन हो जाता है। पर जीवन में योग को स्थान नहीं मिल पाने के कारण हमारा जीवन कष्टकर होता जा रहा है। फलस्वरूप शरीर सबसे पहले तनाव का शिकार होता है और एक बार मन बीमार हुआ तो तन के बीमार होते देर नहीं लगती है।

योग की नई पद्धति “यौगिक कैप्‍सूल”

विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने आज की युवापीढ़ी की समस्याओं को शिद्दत से महसूस किया और उन्होंने आधुनिक जीवन-पद्धति को ध्यान में रखकर योग साधना की एक ऐसी पद्धति का प्रतिपादन किया है, जिसे अपनाने से जीवन में बदलाव स्पष्ट रूप से दिखते हैं। देश-विदेश के लाखों लोग इस पद्धति को अपना कर निरोगी जीवन जी रहे हैं और उनके काम करने की क्षमता में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। स्वामी जी अपनी इस पद्धति को “यौगिक कैप्सूल” कहते हैं।

जैसे विटामिन का कैप्‍सूल रोज वैसे ही योग का भी

स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने यौगिक कैप्सूल का प्रतिपादन करके अपने गुरु व बिहार योग विद्यालय के संस्थापक महासमाधिलीन परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती के इस कथन को पुष्ट किया है कि स्वामी निरंजन का व्यक्तित्व नए युग के अनुरूप है और वह आज की पीढ़ी के अनुरूप सोच सकते हैं। जिस प्रकार हम आरोग्य के लिए विटामिन का एक कैप्सूल प्रतिदिन लेते हैं, उसी प्रकार हमें अपनी शारीरिक ऊर्जा में संतुलन लाने, अपने मन- मस्तिष्क की कार्य-क्षमता बढ़ाने, अपनी भावनाओं को सुव्यवस्थित करने और अपने कर्मों को कुशलतापूर्वक करने के लिए योग का एक कैप्सूल प्रतिदिन लेना चाहिए। इस लघु साधना के माध्यम से हम योग को आसानी से अपनी जीवनचर्या में शामिल कर अपना सर्वांगीण विकास कर सकते हैं।

क्‍या- क्‍या शामिल हैं इस यौगिक कैप्‍सूल में

यौगिक कैप्सूल में तीन मंत्र, पांच आसन, दो प्राणायाम और शिथिलीकरण का एक लघु अभ्यास सम्मिलित है। यह कैप्सूल प्रतिदिन लिया जाना चाहिए। हर व्यक्ति, चाहे वह कितना ही व्यस्त क्यों न हो, चौबीस घंटे में अपने लिए दस-पंद्रह मिनट का समय तो निकाल ही सकता है। स्वामी निरंजन ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि बेशक हम अपने दैनिक जीवन के 23 घंटे औऱ 45 मिनट अपनी व्यक्तिगत महत्वकांक्षाओं तथा पारिवारिक एवं सामाजिक दायित्यों को दें, लेकिन पंद्रह मिनट का समय अपने लिए जरूर निकालना चाहिए। इस लघु साधना पद्धति को अपनाने से योग हमारी दिनचर्या का अंग बनकर हमारे जीवन को सात्विक और आध्यात्मिक बनाएगा।

सकारात्‍मक महसूस करेंगे इस कैप्‍सूल से

 “कैप्सूल योग” को अपनी जीवनशैली में सम्मिलित करने की एक निश्चित साधना पद्धति है। यह घर-परिवार में सकारात्मक वातावरण बनाने में सहायता करेगा, मस्तिष्क की कार्य-क्षमता बढ़ाएगा, कर्मों में रचनात्मकता लाएगा, भावनाओं में सामंजस्य स्थापित करेगा और अंतरात्मा को जागृत करेगा। संक्षेप में, जो कुछ भी आप करेंगे उसमें उत्कृष्टता लाएगा। इस योग प्रणाली को अपना कर आप अपने जीवन को एक सुंदर उद्यान में बदल सकते हैं।

सुबह सवेरे सबसे पहले मंत्र

इस साधना पद्धति का पहला चरण है मंत्र। जब हम सवेरे नींद से उठते हैं तब तीन मंत्रों का अभ्यास करना है – महामृत्युंजय मंत्र, गायत्री मंत्र (दोनों ग्यारह बार) और दुर्गा जी के बत्तीस नाम (तीन बार)। महामृत्युंजय आरोग्य मंत्र है, गायत्री मंत्र बुद्धि और विवेक प्राप्ति के लिए है और दुर्गा जी के बत्तीस नाम आपके जीवन की सभी समस्याओं और बाधाओं को दूर करने के लिए हैं। ये तीन मंत्र बीज-स्वरूपी संकल्प हैं, जो हमारे अवचेतन मन में उस समय आरोपित किए जाते हैं जब आपका मन शांत और इंद्रिय-विषयों से पृथक रहता है।  

नाश्‍ते से पहले आसन

अपने नित्यकर्मों से निवृत्त होकर नाश्ते से पहले आसन और प्राणायाम का अभ्यास किया जाना चाहिए। एक सामान्य व स्वस्थ व्यक्ति के लिए कुछ ही आसन पर्याप्त हैं। पहला है ताड़ासन। ताड़ासन के अभ्यास से अस्थियों और मेरूदंड में जमा तनाव और दबाव मुक्त हो जाता है। यह खिंचाव का अभ्यास है, जिससे विभिन्न प्रकार के जोड़ों से दबाव दूर होता है। दूसरा आसन तिर्यक् ताड़ासन है। यह एक सरल पर बेहद लाभदायक अभ्यास है। इसमें पीठ में एक तरफ तो खिंचाव होता है और दूसरी ओर दबाव पड़ता है, जिससे दोनों तरफ का तनाव मुक्त हो जाता है। यह अभ्यास मेरूदंड की गड़बड़ियों को ठीक करने और उसे सीधा करने के लिए उत्तम है। तीसरा आसन है कटि-चक्रासन, जिसमें हम अपने मेरूदंड को मोड़कर शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों को निचोड़ते हैं। इससे शरीर के प्रत्येक अंग, पेशी और जोड़ में सुचारू रूप से रक्त का संचार होता है। चौथा अभ्यास है सूर्य नमस्कार, जिसमें मुख्यत: आगे और पीछे झुकने वाले आसन हैं। इन चार अभ्यासों द्वारा हम शरीर को पांच तरह की अवस्थाओं में लाते हैं – सीधा तानना, पार्श्व की ओर झुकना, मोड़ना, आगे झुकना और पीछे झुकना।

इन सब अभ्यासों के बाद केवल एक ही आसन करने की जरूरत रहती है – शरीर को उल्टा करने वाला आसन। यह शरीर पर गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव को विपरीत करने के लिए किया जाता है। लेकिन इस समूह के आसन थोड़े कठिन होते हैं। इसलिए इन्हें किसी योग्य प्रशिक्षक के मार्ग-दर्शन में ही सीखना चाहिए।

अंत में प्राणायाम

पांच आसनों के अभ्यास के बाद प्रतिदिन दो प्राणायाम जरूरी हैं। पहला है नाड़ी शोधन प्राणायाम, जिसमें दोनों नासिकाओं से बारी-बारी से श्वास लिया और छोड़ा जाता है। यह तंत्रिका प्रणाली की गतिविधियों को संतुलित करने के लिए बहुत प्रभावशाली अभ्यास है, क्योंकि इसके द्वारा अनुकंपी और परानुकंपी तंत्रिका तंत्र में संतुलन आता है और प्राणिक अवरोध दूर होते हैं।

दूसरा अभ्यास है भ्रामरी प्राणायाम, जिसमें कंठ से भौरे जैसा गुंजन पैदा किया जाता है। भ्रामरी प्राणायाम के अभ्यास से मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंग उत्पन्न होती है जिससे मस्तिष्क, स्नायविक तंत्र और अंत:स्रावी तंत्र के विक्षेप दूर होते हैं और व्यक्ति शांति व संतोष का अनुभव करता है।

कुछ अभ्‍यास रात में भी

इस प्रकार तीन मंत्र, पांच आसन और दो प्राणायाम – इन सबके योग से प्रात:कालीन अभ्यास बनता है। रात में सोने से पहले दस मिनट का एक छोटा-सा अभ्यास किया जाना चाहिए। दस मिनट की इस अवधि में घर-परिवार या नौकरी –पेशे से संबंधित कोई विचार नहीं आना चाहिए। अपने आपको आंतरिक शांति और आनंद पर केंद्रित रखा जाना चाहिए।

इस प्रकार हम धीरे-धीरे अपनी दिनचर्या में योग की छोटी-छोटी साधनाएं और अनुशासन सम्मिलित कर सकते हैं। इस कैप्सूल का सोमवार से शुक्रवार तक सेवन करें। शनिवार को नेति जैसे षट्कर्म अथवा अजपा-जप, अंतर्मौंन या त्राटक जैसे किसी ध्यान का अभ्यास कर सकते हैं। रविवार को छुट्टी। स्वामी निरंजनानंद जी कहते हैं कि यही हमारे दैनिक जीवन का योग कैप्सूल होना चाहिए।

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